यूनेस्को विश्व धरोहर: सनातन संस्कृति और प्रकृति प्रेम का प्रतीक मोढेरा का सूर्य मंदिर
मेहसाणा जिला एक अद्भुत जिला है जिसमें एक नहीं दो-दो विश्व विख्यात संरचनाएं मौजूद हैं। इस जिले के पाटन स्थित रानी की वाव यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में वर्ष 2014 में शामिल हुई। वहीं, इसी जिले के मोढेरा गांव में स्थित भगवान सूर्य को समर्पित मंदिर पुष्पावती नदी के किनारे प्रतिष्ठित है। इस संरचना को वर्ष 2022 में यूनेस्को विश्व धरोहर समिति की अस्थायी सूची में जोड़ा गया। यह मंदिर पाटन से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में स्थित है। इस मंदिर का पौराणिक महत्व भी है, कहते हैं रावण वध के बाद भगवान राम ने ब्राह्मण वध के पश्चाताप हेतु यहां आकार हवन किया था। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी मिलता है।
वैसे तो भगवान सूर्य की उपासना भारत में आदिकाल से होती आ रही है। इसलिए देश भर में भगवान सूर्य के अनेक मंदिर हैं लेकिन यह मंदिर भारत में पाए जाने वाले भगवान सूर्य को समर्पित प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है।
सनातन संस्कृति का आधार प्रकृति की उपासना को माना जाता है
यह स्थान अहमदाबाद से उत्तर-पश्चिम में पचहत्तर किलोमीटर और उत्तरी गुजरात में मेहसाणा से पैंतीस किलोमीटर दूर स्थित है। यह एक ऐतिहासिक नगर है जिस पर सोलंकी ने राज किया था। इस पूरे क्षेत्र में सोलंकी घराने के विशिष्ट स्थापत्य के प्रमाण कई संरचनाओं में देखने को मिलते हैं। सनातन संस्कृति का आधार प्रकृति की उपासना को माना जाता है। सनातन संस्कृति में प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे कि पेड़, नदी, पहाड़, आदि – को देव तुल्य माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है। प्रकृति ही शाश्वत और सबसे शक्तिशाली है, इस परम आस्था को सदैव याद रखने और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता दर्शाने हेतु सूर्य मंदिर का निर्माण किया गया अतः इस परिसर में प्रकृति के प्रधान तत्वों जैसे अग्नि, वायु, पृथ्वी, जल और आकाश के प्रति श्रद्धा स्वरूप कई रूप देखने को मिलते हैं।
इस मंदिर को बनाने के लिए उस स्थान का चयन किया गया जहां से कर्क रेखा गुज़रती है
यह एक अद्भुत मंदिर है। इसे बनाने वाले स्थापतियों ने अभियांत्रिकी एवं स्थापत्य के मिलन से एक ऐसी संरचना का निर्माण किया जिससे मंदिर के अंदर जहां साल में सिर्फ दो बार ही सूरज की रोशनी आती है। ऐसा इसलिए होता है कि इस मंदिर को बनाने के लिए उस स्थान का चयन किया गया जहां से कर्क रेखा गुज़रती है। जिसके परिणाम स्वरुप मंदिर के ‘गर्भगृह’ में वर्ष में केवल दो बार “सौर विषुव” के दौरान और “ग्रीष्म संक्रांति” के दिन सूर्य का प्रकाश प्रवेश करता है। यह इस बात का प्रमाण है कि हमारे पूर्वज खगोलशास्त्र के कितने ज्ञानी होते होंगे।
मोढेरा का सूर्य मंदिर देश भर के सूर्य मंदिरों में अपनी एक अलग और विशिष्ट पहचान रखता है
इस मंदिर का निर्माण सोलंकी राजवंश के प्रतापी राजा भीमदेव प्रथम ने ग्यारहवीं शताब्दी की शुरुआत में करवाया था। मोढेरा का सूर्य मंदिर देश भर के सूर्य मंदिरों के बीच अपनी एक अलग और विशिष्ट पहचान रखता है। इसका स्थापत्य बेजोड़ है। इस मंदिर के आन्तरिक और बाह्य दोनों ही हिस्सों में मूर्तिकारों ने प्रकृति मां से लेकर सजीले पक्षी, फूल, देवी-देवताओं, फूलों और पत्तियों का सुन्दर चित्रण इस प्रकार किया है कि वह सजीव जान पड़ते हैं।
मोढेरा की स्थापत्य कला में सोलंकी या चालुक्य वंश की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है
गुजरात की धरती ने अनेक राजवंशों, व्यापारियों, विद्वानों एवं यात्रियों को समय समय पर आकर्षित किया। यहां राज करने वाले राजवंश जैसे चावड़ा, सोलंकी, वाघेला ने इसे सींचा। लेकिन सबसे ज्यादा प्रभाव सोलंकियों का रहा। सोलंकी, जिन्हें चालुक्य के नाम से भी जाना जाता है स्थापत्य कला में विशेष रूचि रखते थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार सोलंकियों के पहले राजा, मूलराज (942-997 ई।) ने चावदास को हराया और उत्तरी गुजरात में आधुनिक पाटन में अपने राज्य की स्थापना की। मूलराज के वंशज चामुंडाराज, दुर्लभराज, भीमदेव प्रथम (1024-1066 ई।), कर्णदेव (1066-1094 ई।), सिद्धराज जयसिम्हा (1094-1144 ई।) और कुमारपाल ने विभिन्न संरचनाओं का निर्माण करवाया जिनका सम्बन्ध अनेक संप्रदायों जैसे शैव, वैष्णव, सौर, शाक्त, जैन आदि से था। इन संरचनाओं के निर्माण में सुन्दर मंदिर, मठ और बड़े जलाशय शामिल थे।
इस स्मारक का संरक्षण और रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है
चलिए मेरे साथ इस विश्व धरोहर के अन्दर से दर्शन करने के लिए। हम जैसे ही प्रवेश द्वार से अन्दर जाते हैं हमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का टिकट काउंटर नज़र आता है। इस संरचना के रखरखाव की ज़िम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण पर है। यह संरचना सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुली रहती है। यहां प्रवेश करते ही कुछ दूरी पर हमें दाएं हाथ पर एक जलाशय दिखाई देता है। इस से जुड़ा हुआ पश्चिम दिशा में एक ऊँचे चबूतरे पर मुख्य मंदिर बना हुआ है जो कि पूरबोंमुखी है। मुख्य मंदिर इस परिसर के केंद्र में स्थित है। जो अन्य संरचनाओं से घिरा हुआ है। यह संरचनाएं अलग-अलग समय पर बनाई गई थीं। इस परिसर में एक सुन्दर-सा अलंकार पूर्ण तोरण, एक स्वतंत्र नृत्य हॉल, एक बड़ा जलाशय, मुख्य मंदिर के उत्तरी भाग में एक मंदिर और कुछ अन्य छोटी संरचनाएं मौजूद हैं।
मंदिर के निर्माण में चमकीले पीले बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है
यह मंदिर 9 मीटर x 11.5 मीटर वर्ग क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके निर्माण में चमकीले पीले बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। इस मंदिर में दो मुख्य भाग हैं – गुढ़ा मंडप और गर्भगृह, दोनों एक संकीर्ण मार्ग से जुड़े हुए हैं। इस मंदिर का शिखर अब मौजूद नहीं है लेकिन इस संरचना को देख कर उसकी भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता हैं।
मंदिर को शिल्पियों ने बहुत ही बारीक़ी से सजाया है
इस मंदिर को शिल्पियों ने बहुत बारीक़ कारीगरी से सजाया है। मंदिर के बाहर की दीवारों पर सुन्दर जीव जंतुओं का चित्रण बोर्डर के रूप में दिया गया है वहीं मंदिर के भीतर का भाग देवताओं की मूर्तियों से सजाया गया है। हॉल के भीतर की दीवारें भगवान सूर्य के आदित्य रूप को दर्शाती हैं। यह संख्या में 12 हैं जो कि एक सौर वर्ष के बारह महीनों का प्रतिनिधित्व करते है। इस मंदिर में स्तंभों के अलंकरण के दो प्रकार देखने को मिलते हैं, एक जो कि मुख्य हाल के भीतर स्थित हैं। इन पर अप्सराओं का चित्रण है और ये अकार में बड़े हैं वहीं दूसरी प्रकार के स्तम्भ आकार में छोटे और फूल पत्तियों से सजे गए हैं।
मंदिर के बीच की दीवारें चौंतीस बड़े पैनलों से सजी हुई हैं
हॉल और मंदिर के बीच की दीवारें चौंतीस बड़े पैनलों से सजी हुई हैं। प्रत्येक पैनल पर, एक केंद्रीय दिव्य आकृति, जिसके चार कोनों पर चार छोटी आकृतियां बनी हुई हैं। इन मूर्तियों को तीन समूहों में बांटा जा सकता है। इसमें सबसे प्रमुखता के साथ 12 आदित्यों को दर्शाया गया है उसके बाद देवियों को और तीसरी श्रेणी में अन्य मूर्तियां जैसे दिग्पाल आदि आती हैं। बारह आदित्यों को गर्भगृह की दीवारों पर और बारह गौरियों को हॉल की दीवारों पर स्थापित किया गया है। यहां आठों दिशाओं में प्रहरी दिग्पाल भी स्थापित किए गए हैं।
मोढेरा का वर्णन सबसे पहले बीसवीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश पुरातत्वविदों जेम्स बर्गेस और हेनरी कूसेंस ने किया था
पूरा मंदिर सुंदर नक्काशी से सजा हुआ है। भारतविद् एवं पुरातत्ववेत्ता किरीट मनकोड़ी मोढेरा पर लिखी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि मोढेरा का वर्णन सबसे पहले बीसवीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश पुरातत्वविदों जेम्स बर्गेस और हेनरी कूसेंस ने किया था। मंदिर की बाहरी दीवारों और अन्य जगहों पर बारह आदित्यों की मौजूदगी से हमेशा यह माना जाता रहा है कि यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित था।
मोढेरा मंदिर को सूर्य और शिव दोनों को समर्पित माना जाता है
यहां मंदिर में शिव की पत्नी गौरी के बारह रूप और बारह आदित्यों के बराबर महत्व दिया जाता है। द्वार पर केंद्रीय खंड में शिव को दर्शाया गया है और त्रिपाद भैरव की एक प्रमुख छवि है, इसलिए मोढेरा मंदिर को सूर्य और शिव दोनों को समर्पित माना जा सकता है। ऐसा देखने में आता है कि शिव और सूर्य कई स्थानों पर एक ही माने गए हैं। यह मंदिर भव्य, दिव्य और अलौकिक है। इसके महत्व को समझते हुए यहां हर वर्ष जनवरी में सूर्य देवता के सम्मान में यहां एक नृत्य उत्सव आयोजित किया जाता है। इस उत्सव के अवसर पर, मंदिर को रात में उच्च गुणवत्ता वाली ध्वनि प्रणालियों और उत्कृष्ट प्रकाश व्यवस्था के साथ रोशन किया जाता है, जो आगंतुकों को नृत्य का आनंद लेने के लिए एक आदर्श वातावरण प्रदान करता है।
पर्यटकों के लिए क्या है ख़ास ?
आज से दस वर्ष पीछे की अपनी यात्रा को याद करूँ तो यह स्थान रखरखाव की नज़र से पीछे था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। इसमें सबसे आकर्षक है यहां होने वाला साउंड एंड लाइट शो। ये शो अपने में अनोखा है। यह 3-डी तकनीक से चलने वाला शो है जिसमें इस संरचना से जुड़े इतिहास को रोचक तरीके से दर्शाया जाता है। इस आधुनिक तकनीक वाले शो का शुभारम्भ मोदी जी द्वारा 2022 में किया गया था। आज मेहसाणा देश का पहला ऐसा गांव है जो पूर्ण रूप से सोलर एनर्जी पर कार्य करता है। यह अपनी तरह की अनोखी परियोजना है जिसके लिए सरकार ने करोड़ों रुपये का बजट रखा है।
कैसे पहुंचें ?
यह स्थल उत्कृष्ट सड़कों के नेटवर्क द्वारा गुजरात के बाकी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद से मोढेरा के लिए सीधी राज्य परिवहन की बसें, निजी बसें और टैक्सियां चलती हैं। हालांकि मोढेरा किसी भी रेलवे नेटवर्क पर नहीं है । इसका नजदीकी रेलवे स्टेशन मेहसाणा है। हवाई यात्रियों के लिए, अहमदाबाद मोढेरा पहुंचने का एक सुविधाजनक विकल्प है यहां से आगे आप सड़क मार्ग से मेहसाणा पहुंच सकते हैं ।